प्रथम गोलमेज सम्मलेन में अछूतों के अधिकार हेतु गरजे डॉ. बी.आर. अम्बेडकर जी

प्रथम गोलमेज सम्मलेन   
        12 नवम्बर 1935  को ब्रिटिश प्रधानमन्त्री रेम्जे मेक्डोनाल्ड की अध्यक्षता में प्रथम गोलमेज कोंफ्रेंस प्रारम्भ हुई | कोंफ्रेंस भाग लेने के लिए ब्रिटिश भारत के 53, रियासती भारत के 20 , और ब्रिटिश दलों के 16 , कुल 89 प्रतिनिधि सम्मलित हुए | दलितों के प्रतिनिधि के रूप में डॉ. अम्बेडकर और राव बहादुर श्रीनिवासन को आमंत्रित किया गया |
         कोंफ्रेंस की कार्यवाही सुचारू रूप से चली | डॉ. अम्बेडकर को बोलने का अवसर दिया उन्होंने साहस के साथ अपनी बात रखते हुए कहा – मैं जिन अछूतों की प्रतिनिधि की अहसियत से यहाँ खडा हूँ , उनकी संख्या भारत की जनसँख्या का पांचवां भाग है | अर्थात इंग्लैण्ड या फ़्रांस की जनसँख्या के बराबर है , परन्तु मेरे इन अछूत भाइयों की स्थिति गुलामों से बदतर है , गुलामों के मालिक उनको छूटे थे | परन्तु हमें छूना भी पाप समझा जाता है | ब्रिटिश राज्य से पहले हम घृणित अवस्था में थे | क्या सरकार ने हमारी हालत सुधारने में हमारे लिए काम किया ? हम गाँव के हों से पानी नहीं भर सकते थे , क्या ब्रिटिश सरकार हमें वह अधिकार दिलाया |
        न्होंने अपना वक्तव्य जारी रखते हुए कहा “150 वर्षों के राज्य में हमारी हालत वैसी ही रही है | ऐसी सरकार से हमारा क्या भला होगा | आज अछूत मौजूदा राज्य के स्थान पर जनता के लिए जनता का  राज चाहते हैं | मजदूर और किसानों का शोषण करने वाले पूंजीपति और जमींदार की रक्षक सरकार हमें नहीं चाहिये | हमारे दुःख हम स्वयं दूर करेंगे और उसके लिए हमारे हाथों राजनैतिक सत्ता चाहिए | मौजूदा हालत में कोई ऐसा विधान व्यवहार्य नहीं हो सकता जो देश के बहुमत को स्वीकार न हो | वह जमाना अब बीत गया जब आप फैसला करते थे और भारत मानता था | वह जमाना अब कभी नहीं लौटेंगा 
         डॉ. अम्बेडकर का जोश और आक्रोश भरा भाषण सुनकर अंग्रेज हडबडा गए | उन पर भारत की क्रन्तिकारी पार्टी से सम्बन्ध होने का संदेह हुआ | पर ऐसा कुछ भी नहीं था | यह राष्ट्रीय आन्दोलन को उनकी स्वीकृति और दलितों की पीड़ा की मुखर अभिव्यक्ति थी |
         गोलमेज कांफ्रेंस में डॉ. अम्बेडकर ने अध्यक्ष को स्मरण पत्र दिया जिसमें छुआछूत की समाप्ति , नागरिकता का सामान अधिकार , तीनों सेनाओं में अछूतों की  सेनिकों की भर्ती , नौकरियों में प्रवेशाधिकार , प्रथक चुनाव, प्रथक निर्वाचक संघ तथा सुरक्षित सीटें जैसी मांगे थी |
         19 जनवरी 1931 को बिना किसी के निष्कर्ष पर पहुंचे कोंफेंस समाप्त हो गई | डॉ. अम्बेडकर व श्रीनिवासन लन्दन रवाना हुए और 27 फ़रवरी 1931 को बंबई पहुँच गए | अछूतों की और से डॉ. अम्बेडकर का जोरदार स्वागत हुआ 
         कांफ्रेंस की बड़ी सफलता यह रही की बंबई सरकार ने दलितों को पुलिस में भर्ती करना आरम्भ कर दिया | डॉ. अम्बेडकर की विलक्षण योग्यता को देखकर सरकार ने उनको बंबई कोंसिल का सदस्य नियुक्त कर दिया | दलित शोषित समाज के लिए यह बड़े गौरव की बात थी |

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