डॉ. अम्बेडकर में
ज्ञानार्जन की पिपासा बनी हुई थी | लन्दन में अपनी पढाई को वे बीच में छोड़कर
वह स्वदेश लौट आये थे | अब वह पुन: लन्दन जाकर डिग्रियां
हासिल करना चाहते थे
5 जुलाई
1920 को उन्होंने नौकरी से स्तीफा दे दिया और लन्दन के लिए पुन: रवाना हो गए सन
1921 में लन्दन में विश्वविद्यालय ने उनको “ब्रिटिश भारत में प्रान्तीय जमाबंदी”
प्रबन्ध पर एम.एससी. की उपाधि प्रदान की | सन
1921 में ही “रुपये की समस्या” प्रबन्ध
पर बेरिस्टर एट.लॉ. तथा डी.एससी. की डिग्रियां मिली अब स्वयं उनके सामने ही धन की समस्या
खडी हो गई | पैसे की तंगी के चलते 14 अप्रैल 1923 को लन्दन
से बम्बई लौट आये |
छुआछूत के जिन शोलों ने डॉ. अम्बेडकर को झुलसाया था वे घाव
आज तक भी ठीक नहीं हुए थे | होते भी कैसे , भला बिना मवाद निकले
फोड़ा ठीक हो सकता है | वे कोलंबिया विश्वविद्यालय से एम. ए.,
पीएच. डी. तथा लन्दन विश्वविद्यालय से एम.एससी. , डी. एससी. , तथा बार-एट लॉ. जैसी डिग्रियां प्राप्त
थी | स्पर्श-बंदी, रोटी-बंदी , बेटी-बंदी और व्यवसाय बंदी , समाज के ये चार स्तम्भ
है , जिन पर वह टिका है | डॉ. आंबेडकर
समाज की इस विकृत समाज व्यवस्था में सुधार लाने के सुभेच्छु थे | उन्होंने उक्त बंदिशों की दीवारों को ढहाकर समूचे समाज को एक बनाने का
सपना संजोया |
डॉ.
आंबेडकर के पास आज कानून , इतिहास ,
तत्वज्ञान , धर्मशास्त्र , मानववंश शास्त्र , राज्यशास्त्र ,अर्थशास्त्र ,समाजशास्त्र , आदि
विभिन्न विषयों का विपुल ज्ञान भण्डार था | डॉ. आंबेडकर का
गाँधी से मतान्तर था वे वर्ण वयवस्था को जड़-मूल से मिटाना चाहते थे ताकि
जाति-पांति व छुआछुत स्वतः ही समाप्त हो जाये | लेकिन गाँधी
जी इसके पक्ष में नहीं थे | डॉ. अम्बेडकर स्वयं अछूत थे |
इसलिए दुसरे समाज सुधारकों व उनमें मरीज व डॉक्टर का अंतर था
अपने
आन्दोलन को जन-जन तक पहुँचाने के लिए प्रिंट मीडिया को उचित माध्यम माना | डॉ. अम्बेडकर ने 29
जुलाई 1917 को अपने “बहिस्कृत भारत” नामक
पाक्षिक पत्र में लिखा था , अछुतोद्वार आन्दोलन को नई दिशा
देने के लिए उन्होंने 20 जुलाई 1924 को बंबई में “बहिष्कृत हितकारिणी सभा” की
स्थापना की | इस सभा का काम पिछड़े लोगों का चहुमुखी विकास करना था | अधिक जोर
शिक्षा पर दिया था | सभा के मंत्री शिवतारकर व व्यवस्थापिका समिति के अध्यक्ष डॉ.
अम्बेडकरथे | अप्रैल 1925 को डॉ. अम्बेडकर की अध्यक्षता में महाराष्ट्र के
रत्नागिरी जिले के मालवण नामक गाँव में “बम्बई प्रांतीय अस्प्रश्य परिषद्” का पहला
अधिवेशन हुआ | यह विराट सम्मलेन अछूतों पर हो रहे अमानवीय अत्याचारों के विरोध में
, सवर्णों को उनके आचार-विचार व व्यवहार में परिवर्तन लाने की चेतावनी थी |
कोई अछूत मैले-कुचले, फटे-पुराने कपडे पहने व
उदास चेहरे पर पेट की भूख लिए, डॉ. अम्बेडकर के सामने आता , वे उन्हें प्यार से
फटकारते , अरे तुम्हारी यह दुर्दशा ! तुम्हारा करुणाजनक चेहरा देखकर और तुम्हारे
दीनता पूर्वक शब्द सुनकर मेरे कलेजा फट जा रहा है , तुम अब अपने दीन हीन जीवन से
दुनिया की दुःख दरिद्रता को क्यों बढ़ाते हो | मां के गर्भ में ही तुम मर क्यों
नहीं गए , अब भी मर जाओगे तो संसार पर तुम्हारा उपकार होगा | ऐसा कहते कई बार तो
उनकी आँखें छलछला आती थीं |
वे अपने
अछूत भाइयों को सदा उपदेश देते थे की मांस नहीं खाएं , शराब न पियें , | भूखा रहकर
भी अपने बालकों को स्कूल जरुर भेजें |
19 मार्च
1927 को डॉ. अम्बेडकर की अध्यक्षता में ही “दलित जाति परिषद” का अधिवेशन हुआ |
स्थान था , कोलाबा जिले का महाड़ गाँव | इस गाँव की मनोदशा बड़ी ही संकुचित थी |
गाँव के चवदार तालाब में पशु लौटते थे ,
पंछी पंख भिगोते थे , परन्तु अछूतों को उसका पानी छूने तक की मनाही थी | अधिवेशन
में इस भेदभाव पूर्ण रवैये को समाप्त कर “अछूतों को भी तालाब के पानी का उपयोग
करने का अधिकार है” प्रस्ताव पारित किया गया |
डॉ.
अम्बेडकर ने लोगों को समझाते हुए कहा “हम अपने अधिकार स्थापना के लिए तालब जा रहें
हैं परन्तु आप लोगों को हर हालत में शांत बना रहना है |
अछोतों
में एक और जल ग्रहण अधिकार का उत्साह था तो दूसरी और वे पूर्णत अनुशासित थे | इस
आन्दोलन के प्रणेता और नेतृत्व करने वाले डॉ. अम्बेडकर थे | लगभग पांच हजार
नर-नारी चार-चार की कतार बनाकर उनके पीछे- पीछे गंतव्य की और बढ़ रहे थे | डॉ.
अम्बेडकर जिंदाबाद , महात्मा फुले अमर रहे जैसे गगनचुम्बी नारे लग रहे थे | जुलुस
चवदार तालाब के पास ठहर गया था |
डॉ.
अम्बेडकर ने सर्वप्रथम पानी की अंजलि भरी | तत्पश्चात एक के बाद एक सभी ने तालाब
में हाथ मुंह धोये और पानी पिया | अधिकार ! जिससे वे वंचित थे , उसे हासिल कर लिया
था | इस विजयश्री के उपरान्त जुलुस शांतिपूर्वक पांडाल लौट आया था |
माहोल
बिगड़ने और आन्दोलनकारियों का मनोबल गोराने के लिए कतिपय दकनियानुसियों ने यह अफवाह
गिला दी थी की अब अछूत स्थानीय वीरेश्वर मंदिर जायेंगे | धर्मांध लोग उबल पड़े | वे
अपनी-अपनी लाठियां निकाल लाये और पांडाल में आकर अछूतों पर बरस पड़े | उनके खाध्य-पेय
पदार्थों को मिटटी में कर दिया | डॉ. अम्बेडकर ने जब उनको समझाया की हमारा मंदिर
प्रवेश का कोई कार्यक्रम नहीं , तब जाकर उन्मादी शांत हुए |
अब
उन्होंने लोगों पर उल्टा उस्तरा यह चलाया
की अछूतों के छूने से समूचा तालाब नापाक हो गया है , इसलिए उसके शुद्धिकरण के लिए
अनुष्ठान किया जाये | अंधविश्वास उन्माद की जड़ हुआ करता है | श्रधांत मान गए |
मंत्रोचारण के साथ तालाब से 108 घड़े पानी निकल कर बहार उडेला गया | और उतने ही घड़े
गायों का गोबर व पेसाब मिलाकर उस तालब में डलवाया गया अब तालब पवित्र हो गया था |
उधर महाड़
नगरपालिका ने सवर्णों के दबाव में आकर 4 अगस्त 1927 को अपना वह प्रस्ताव रद्द कर
दिया , जिसके अनुसार तालब अछूतों के उपयोग के लिए खुला था | इसके विरोध में डॉ.
अम्बेडकर अपने 200 प्रतिनिधियों के साथ 24 सितम्बर 1927 को फिर महाड़ के लिए रवाना
हुए | महाड़ के पास दास गाँव पहुँचने पर असंख्य अछूतों डॉ. अम्बेडकर का तहेदिल से
स्वागत किया
महाड़ में
ड्यूटी पर तैनात पुलिस अधीक्षक ने डॉ. अम्बेडकर से कहा की वे तालाब जाने से पूर्व
जिला मजिष्ट्रेट से मिल लें | डॉ अम्बेडकर जब जिला मजिस्ट्रेट से मिले तो उन्होंने
कहा कुछ लोगोने कहा है चवदार तालब को खानगी संपत्ति होने का कानूनी प्रश्न उठाया
है , इस लिए जब तक इस विवाद का निर्णय नहीं हो जाता, आप सत्याग्रह नहीं करें
|
बैरिस्टर अम्बेडकर ने प्रत्युतर दिया – जिस तालाब का उपयोग हिन्दू,
मुस्लिम, ईसाई करतें हैं, वह खानगी कैसे हो सकता है, हम सत्याग्रह जरुर करेंगे मजिस्ट्रेट नहीं माने |