अगर मुझे
निवेदित सूचना नहीं मिलती तो क्या करूं (What to do if I do not get requested
informations)
दुर्भाग्यवश
नौकरशाही में अभी भी गोपनीयता का बोलबाला है, और वर्तमान में लोक सूचना
अधिकारी सारहीन आधारों पर अक्सर सूचना के अधिकार के तहत आए आवेदनों को रद्द कर
देते हैं। उदाहरण के लिये, लोक सूचना अधिकारियों ने इसलिये आवेदनों
को रद्द किया क्योंकि मांगी गई सूचनाएँ उनके नियंत्रण में नहीं थी; जबकि उनका
कानूनी दायित्व बनता था कि वे ऐसे मामलो में आवेदन को सम्बन्धित प्राधिकरण को
हस्तांतरित करते। उन्होंने अक्सर गलत तरीके से छूट की श्रेणी को आधार बनाया है और
कुछ प्राधिकरणों ने तो मात्र इसलिये आवेदनों को स्वीकार करने से इंकार कर दिया है
कि लोक सूचना अधिकारी उपलब्ध नहीं है या छुट्टी पर गया है।
पालना न करने की स्थिति का पूर्वानुमान लगाते हुए सूचना का
अधिकार अधिनियम ने अपने तहत अपील तथा शिकायत की व्यवस्थाएँ स्थापित की हैं जो
नागरिकों को निर्णयों को चुनौती देने या लोक प्राधिकरणों और सरकारी अधिकारियों के
खराब प्रदर्शन के विरुद्ध शिकायत करने के सस्ते और सरल विकल्प प्रदान करती हैं।
आवेदक सम्बन्धित विभाग के नामित वरिष्ठ अधिकारी (जिसे अपील प्राधिकरण कहा गया है)
के यहाँ अपील कर सकते हैं या वे सम्बन्धित सूचना आयोग को शिकायत कर सकते हैं। इन
आयोगों को केन्द्र और सभी राज्यों (जम्मू-कश्मीर को छोड़) द्वारा स्थापित किया गया
है।
विकल्प 1 : अपील करें
अपील की प्रक्रियाएँ अधिनियम की धारा 19 के तहत आती
हैं और उनकी परिकल्पना दो चरणों वाली प्रक्रिया के रूप में की गई है : पहले विभाग
के अपील प्राधिकारी के पास अपील और दूसरे नये बनाये गये सूचना आयोगों में से
सम्बन्धित आयोग में अपील। अपील की प्रक्रिया को अदालतों के मुकाबले एक अपेक्षाकृत
तीव्र और सस्ता तरीका माना गया है जिसके जरिए आवेदक फैसलों की समीक्षा करा सकते
हैं।
अपील बनाम शिकायतें – अंतर क्या है?
किसी लोक सूचना अधिकारी के निर्णय से
अंसतुष्ट आवेदक विभाग के अपील प्राधिकारी से अपील कर सकते हैं। यह प्राधिकारी
उसी लोक प्राधिकरण में लोक सूचना अधिकारी का कोई वरिष्ठ अधिकारी होगा। आप और लोक
सूचना अधिकारी का पक्ष सुनने के बाद अपील प्राधिकारी को फैसला करना होगा कि क्या
लोक सूचना अधिकारी का निर्णय सही था या नहीं। अगर अपील प्राधिकारी के निर्णय से
भी आप संतुष्ट नहीं होते, तो आप सूचना आयोग के यहाँ दूसरी अपील कर सकते हैं।
या फिर सूचना
अधिकार अधिनियम के तहत किसी सूचना तक पहुँच बनाने से सम्बन्धित किसी भी मामले
में – जैसे तय समयावधि के भीतर सूचना न देना; अतर्कसंगत
शुल्क मांगना; आप के गरीबी रेखा से नीचे होने के बावजूद आपसे
शुल्क मांगना, आपने जिस अभिलेख के लिये निवेदन किया था,
उसे नष्ट कर देना; या सूचना के खुलासे के
बारे में गलत फैसला लेना – आप सीधे सम्बन्धित सूचना आयोग
को शिकायत कर सकते हैं। आप शिकायत के मामले में विभाग के अपील प्राधिकारी को
दरकिनार कर सकते हैं, लेकिन आपके लिये इस कार्रवाई को ‘शिकायत’ की संज्ञा देना जरूरी है क्यों कि अन्यथा
सूचना आयोग आपके सम्प्रेषण को एक अपील मान सकता है और आपसे कह सकता है कि आप
पहले विभाग के अपील प्राधिकारी के पास जायें।
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पहली अपील, अपील प्राधिकारी से
हर लोक प्राधिकरण में अपील सुनने के लिये लोक सूचना अधिकारी
से वरिष्ठ एक अधिकारी को मनोनीत किया गया है। उसे अपील प्राधिकारी कहा जाता है।
आपको लोक सूचना अधिकारी से अपने आवेदन के स्वीकृत या रद्द होने के बारे में जो
नोटिस मिलता है, उसमें सम्बन्धित अपील प्राधिकारी के
सम्पर्क विवरण शामिल होने चाहिए ताकि आप जान सकें कि आपको निर्णय की समीक्षा कराने
के लिये किसके पास जाना चाहिए। अगर नोटिस इस बात की सूचना नहीं देता, तो आप उस
सार्वजनिक प्राधिकरण के वेबसाइट पर जा कर या सीधे लोक सूचना अधिकारी से सम्पर्क कर
अपील प्राधिकारी के विवरण मांग सकते हैः
आप निम्न स्थितियों में अपील प्राधिकारी से अपील कर सकते
हैः
(क) आप किये गये फैसले से
असन्तुष्ट हैं;
(ख) लोक सूचना अधिकारी द्वारा
तय समयावधि के भीतर कोई फैसला नहीं लिया गया; और
(ग) आप तीसरा पक्ष हैं जिससे
आवेदन पर कार्रवाई करने के दौरान विचार-विमर्श किया गया था, लेकिन आप
लोक सूचना अधिकारी द्वारा किये गये निर्णय से संतुष्ट नहीं हैं।
आपको लोक सूचना अधिकारी के फैसले का नोटिस मिलने की तिथि
(या जिस तिथि को आपको यह नोटिस मिल जाना चाहिए था) के 30 दिनों के
भीतर अपील प्राधिकारी के पास अपील करनी होगी। लेकिन, अगर आप इस समयावधि के भीतर
अपील नहीं कर पाते और अपील प्राधिकारी को लगता है कि आप किन्हीं उचित कारणों से तय
समयावधि के भीतर अपील नहीं कर पाये, तो वह आपको तीस दिन की अवधि
के समाप्त हो जाने के बाद भी अपील करने की स्वीकृति दे सकती/सकता है।54
आपको अपनी अपील सम्बन्धित अपील प्राधिकारी के पास लिखित में
भेजनी होगी। कुछ राज्य सरकारों ने अपील के लिये खास फार्म निर्धारित किये हैं।
आपको सम्बन्धित अपील प्राधिकारी से पता करना चाहिये कि क्या आपके राज्य ने ऐसा कोई
फार्म निर्धारित किया है। आप अपील को स्वयं सीधे दे सकते हैं या डाक/कूरियर से
भिजवा सकते हैं। इसके अलावा, आप सम्बन्धित प्राधिकरण के सहायक लोक
सूचना अधिकारी को भी अपनी अपील भेज सकते हैं। आपकी अपील को सम्बन्धित अपील
प्राधिकारी को अधिकतम 5 दिनों के भीतर आगे भेजना उसका कर्तव्य है।55
सूचना का अधिकार अधिनियम किसी अपील प्राधिकारी के पास (या
सूचना आयोग) में अपील करने के लिये आवेदक से कोई शुल्क लेने की इजाजत नहीं देता।
दुर्भाग्यवश, महाराष्ट्र56 और मध्य
प्रदेश57 जैसे कुछ राज्यों ने ऐसे नियम
निर्धारित किये हैं जिनके तहत अपील शुल्क देना पड़ता है। अपील शुल्क लगाना या
शुल्क न देने के कारण किसी अपील को रद्द कर देना कानूनी रूप से उचित नहीं है। अगर
आपके राज्य ने अपील शुल्क लगा रखा है तो आप सम्बन्धित सूचना आयोग या अपने उच्च
न्यायालय से इस विषय पर विचार करने का निवेदन कर सकते हैं या इस मुद्दे को बहस के
लिये अपनी राज्य विधान सभा में उठवाने के प्रयास कर सकते हैं।
अपील/शिकायत करते समय शामिल की जाने
वाली सूचनाएँ
भले ही आपके राज्य ने अपील करने के
लिये कोई खास फार्म तय किया हो या नहीं, सभी अपीलों में कम से कम निम्न सूचनाएँ
शामिल होनी चाहिएः
(क) आपका नाम और सम्पर्क
विवरण, डाक पते, मकान नम्बर तथा
ई-मेल पते सहित;
(ख) लोक सूचना अधिकारी
का नाम और पता जिसके फैसले के विरुद्ध अपील की जा रही है;
(ग) जिस आदेश के विरुद्ध
आप अपील कर रहे हैं, उससे सम्बन्धित ब्योरे (क्रम संख्या
सहित);
(घ) अगर अपील आवेदन पर
कोई जवाब न मिलने के कारण की जा रही है (या जिसे ‘डीम्ड
रेफ्यूजल’ कहा जाता है), तो आवेदन की
पावती संख्या, जमा कराने की तिथि, लोक
सूचना अधिकारी के नाम और पते सहित आवेदन सम्बन्धी ब्योरे;
(च) अपने मामले के
संक्षिप्त तथ्य;
(छ) आपके द्वारा मांगी
जाने वाली राहत और राहत के आधार; उदाहरण के लिये, आप निवेदित सूचना को जारी कराना चाहते हैं क्योंकि वह कानूनन छूट की
श्रेणी में नहीं आती;
(ज) आपके द्वारा पुष्टि,
जैसे यह वक्तव्य “मैं प्रमाणित करता हूँ कि
इस आवेदन की सभी सूचनाएँ मेरी जानकारी के अनुसार सच और सही हैं”; और
(झ) कोई अन्य उपयोगी
सूचना जो आपके अनुसार आपकी अपील के फैसले में मदद कर सकती है।
*यह अपील के नोटिस की सामान्य विषयवस्तु
का एक बुनियादी संक्षिप्त रूप भर है। सीएचआरआई का सुझाव है कि आप सम्बन्धित
नियमों को देख लें या फिर अपील प्राधिकारी या सूचना आयोग से पुष्टि करें कि आपको
अपनी अपील में किन विवरणों को शामिल करने की जरूरत है।
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सामान्यतः
अपील प्राधिकारी को आपकी अपील प्राप्त होने के तीस दिनों के भीतर अपना फैसला देना
होता है। लेकिन इस सीमा को आगे बढ़ाया जा सका है, पर अपील प्राधिकारी के लिये
फैसले की अधिकतम समय सीमा 45 दिन है। अगर फैसले में 30 दिन से
ज्यादा का समय लिया जाता है तो अपील प्राधिकारी को समय सीमा बढ़ाने के कारण लिखित
में दर्ज करने होंगे और अपना अन्तिम फैसला सुनाते वक्त आपको भी सूचित करने होंगे।58
अगर अपील प्राधिकारी आपकी अपील को स्वीकार कर लेता है और
फैसला करता है कि आपको सूचना दी जानी चाहिए, तो उसे आप और सम्बन्धित लोक
प्राधिकरण को लिखित में इसकी सूचना देनी चाहिए। और अगर अपील प्राधिकारी आपकी अपील
को अस्वीकार कर देता है, तो फैसले के नोटिस में केन्द्रीय या राज्य
सूचना आयोग को अपील कर सकने के आपके अधिकार के विवरण होने चाहिए।
आम तौर पर अपील प्राधिकारी अपीलों का
निपटारा कैसे करते हैं?
सूचना अधिकार
अधिनियम अपील प्राधिकारियों द्वारा अपीलों पर फैसला करने की कोई पद्धति
निर्धारित नहीं करता। लेकिन सामान्यतः अपील की कार्रवाई को प्रतिद्वंद्वितापूर्ण
होने की बजाय सच की खोज करने का एक प्रयास होना चाहिए। उसे बस इस बात को पता
लगाने की कोशिश करनी चाहिये कि क्या अधिनियम को सही तरीके से लागू किया गया था
या नहीं। किसी भी अपील में यह साबित करने का दायित्व लोक सूचना अधिकारी का है कि
आवेदन को रद्द करने का उसका फैसला सही था। इसका अर्थ है कि हर सुनवाई में लोक
सूचना अधिकारी से पहले अपना पक्ष रखने के लिये कहा जाना चाहिए। आपको अपना पक्ष
रखने यानी लोक सूचना अधिकारी के फैसले को गलत साबित करने के लिये केवल तभी
बुलाया जाना चाहिये, जब लोक सूचना अधिकारी अपने पक्ष को मजबूत तरीके से प्रस्तुत कर पाया हो।
किसी भी मामले में अपील प्राधिकारी को यह तय करने के लिये कि क्या लोक सूचना
अधिकारी का फैसला सही था, फिर से सभी तथ्यों पर स्वतन्त्र
रूप से विचार करने की जरूरत होगी। सभी सम्बन्धित पक्षों – आप,
लोक सूचना अधिकारी या वह तीसरा पक्ष जिससे सूचना के खुलासे के
बारे में विचार-विमर्श किया गया – को फैसले से पहले सुनवाई
का अधिकार है।
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ध्यान देने
योग्य बात यह है कि सूचना का अधिकार अधिनियम अपील प्राधिकारी को उस स्थिति में भी
दण्ड देने की शक्ति प्रदान नहीं करता जब अधिकारियों के विरुद्ध अधिनियम की पालना न
करने की बात साबित हो जाये। इसका अर्थ हुआ कि अगर अपील प्राधिकारी आपके पक्ष में
फैसला दे भी दे, तब भी आपको अपील प्राधिकारी से यह निवेदन
करना पड़ सकता है कि दंड के मुद्दे को तय करने के लिये वह आपके मामले को सूचना
आयोग के पास भेज दे। या फिर आप केवल दंड के मुद्दे पर सूचना आयोग से शिकायत कर
सकते हैं।
सूचना आयोग की दूसरी अपील
अगर आप अपील प्राधिकारी के फैसले से असन्तुष्ट हैं, तो सूचना
का अधिकार अधिनियम आपको केन्द्र व राज्यों में नव-स्थापित सूचना आयोगों के पास
दूसरी अपील करने का विकल्प प्रदान करता है। दूसरी अपील अपील प्राधिकारी का फैसला
आपको प्राप्त होने की तिथि या जिस तिथि को वह फैसला हो जाना चाहिए था, उसके 90 दिनों के
भीतर की जानी चाहिए। लेकिन, सूचना आयोग को यह समय सीमा समाप्त हो जाने
के बाद भी अपील की स्वीकृत देने की शक्ति प्राप्त है।59
सूचना आयोग – खुलेपन के समर्थक
सूचना अधिकार अधिनियम के तहत केन्द्रीय
और राज्य सरकारों के स्तर पर स्वतंत्र और स्वायत्त सूचना आयोग स्थापित करने की
जरूरत है।60 नवनियुक्त सूचना
आयुक्तों की अध्यक्षता में काम करने वाले इन नये आयोगों को सभी राज्यों में
स्थापित किया गया है। (अधिक जानकारी के लिये देखें परिशिष्ट 4)। आयोगों को यह सुनिश्चित करने में कई मुख्य भूमिकायें अदा करनी हैं कि
सूचना अधिकार अधिनियम जनता को सूचनाओं तक पहुँच प्रदान करने वाला एक प्रभावी
औजार बने। विशिष्ट तौर पर हर आयोग जिम्मेदार हैः
- शिकायतों और अपीलों पर
कार्रवाई करनाः अधिनियम के तहत अपनी सूचना की आवश्यकताओं के पूरा न होने
की स्थिति में सभी नागरिकों को सूचना आयोग से अपील और शिकायत करने का अधिकार है।
निर्णयों की समीक्षा करने में सूचना आयोगों को व्यापक जाँच शक्तियाँ – किसी भी दस्तावेज का
निरीक्षण करने सहित, भले ही वह छूट की श्रेणी में आता हो –
प्राप्त हैं। उनके पास लोक प्राधिकरणों से अधिनियम की पालना कराने
की भी सुदृढ़ और बाध्यकारी शक्तियाँ हैं। इनमें सूचना को जारी करने; लोक सूचना अधिकारियों की नियुक्ति करने अभिलेख व्यवस्थाओं में सुधार
करने आवेदकों को मुआवजा देने और जुर्माने के आदेश करने की शक्तियाँ शामिल हैं।61
- कार्यान्वयन की
निगरानी करनाः हर साल के अन्त में केन्द्रीय और राज्य
सूचना आयोगों को एक वार्षिक रिपोर्ट तैयार करना होता है। केन्द्रीय आयोग की
रिपोर्ट को संसद और राज्य आयोगों के रिपोर्टों को सम्बन्धित राज्य की विधान
मण्डल के पटल पर प्रस्तुत किया जाता है। हर रिपोर्ट में मूल आवेदनों तथा अपील
सम्बन्धी आँकड़ों के साथ कार्यान्वयन के प्रयासों पर टिप्पणी तथा सुधार के लिये
सिफारिशें शामिल होती हैं। आयोग का वार्षिक रिपोर्ट आयोग के अधिकार क्षेत्र में
आने वाले हर प्राधिकरण द्वारा सौंपी गई सूचनाओं के निरीक्षण पर आधारित होता है।62
- विशेष रूप से
मानवाधिकार सम्बन्धित सूचना पर निगरानीः कुछ गुप्तचर
और सुरक्षा एजेन्सियों को अधिनियम के दायरे के बाहर रखा गया है। लेकिन जब मामला
भ्रष्टाचार के आरोपों और मानवाधिकारों के उल्लंघन का हो, तो
वे भी इस दायरे में आ जाती हैं। सूचना आयोगों को मानवाधिकारों के उल्लंघनों से
सम्बन्धित सभी निवेदनों पर कार्रवाई करनी चाहिए।
जो आयोग अभी
तक स्थापित किये जा चुके हैं, वे अभी अपने आधिकारिक कार्यादेश को समझने में लगे हैं।
उन्हें यह सुनिश्चित करने में एक निर्णायक भूमिका अदा करनी है कि सूचना का
अधिकार अधिनियम प्रभावी तरीके से कार्यान्वित हो और जनता को यह सुनिश्चित करने
के लिये सतर्क रहने की जरूरत है कि ये आयोग प्रभावी रूप से काम करें।
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आपको अपनी
लिखित अपील सम्बन्धित सूचना आयोग को भेजनी होती है। केन्द्र सरकार के लोक प्राधिकरणों
के मामले में, आप अपनी अपील केन्द्रीय सूचना आयोग को
भेजें। राज्य सरकार के लोक प्राधिकरणों से सम्बन्धित मामलों में आपको सम्बन्धित
राज्य सूचना आयोग को अपनी अपील भेजनी होगी। पंचायतों के विरुद्ध अपीलें सम्बन्धित
राज्य सूचना आयोगों को भेजी जानी चाहिये।
केन्द्र व राज्य सरकारों ने इस बारे में नियम जारी किये हैं
कि सूचना आयोग को की जाने वाली अपील पत्र में कौन सी सूचनायें शामिल होनी चाहिये।
बुनियादी सूचनाओं के अलावा, आपको अपील के साथ अपने दावे को पुष्ट करने
वाले दस्तावेजों सहित जिस आदेश/फैसले की स्वयं-प्रमाणित प्रति, जिसके
विरुद्ध अपील की जा रही है, और जिन दस्तावेजों का अपील में आपने अपने
समर्थन में उल्लेख किया है, उनकी प्रतियाँ संलग्न करनी चाहिये।
केन्द्र व राज्य सूचना आयोग प्रासंगिक अपील नियमों के तहत
निर्धारित पद्धतियों से अपीलों पर कार्रवाई करते हैं। आयोगों के पास मौखिक और शपथ
पत्र/हलफनामे पर लिखित साक्ष्य लेने; दस्तावेजों या प्रतियों का
निरीक्षण करने; जिस लोक सूचना अधिकारी और/या पहली अपील पर
फैसला करने वाले अपील प्राधिकारी के विरुद्ध अपील की
गई है, उसकी सुनवाई करने और उससे हलफनामा लेने; और आपका
पक्ष सुनने की शक्तियाँ हैं।63 अगर लोक सूचना अधिकारी या
अपील प्राधिकारी का फैसला किसी तीसरे पक्ष से भी सम्बन्धित है तो तीसरे पक्ष को भी
आयोग द्वारा फैसला लिये जाने से पहले सुनवाई का हक है।64
साबित करने की जिम्मेदारी65
किसी भी अपील
पर कार्रवाई में निवेदन को अस्वीकार करने को उचित ठहराने का दायित्व उस व्यक्ति
का है जो सूचना को गोपनीय रखना चाहता है यानी लोक सूचना अधिकारी या तीसरे पक्ष
का। व्यवहार में, इसका अर्थ है कि आपको आयोग के सामने केवल तब आना होगा, जब सूचना को गुप्त रखना चाहने वाले व्यक्ति से सवाल-जवाब हो चुके हों,
क्योंकि आयोग के सामने यह साबित करने का दायित्व उन्हीं का है कि
वे सही हैं। अगर सुनवाई आयोजित होती है तो पहले सूचना को गोपनीय रखने के पक्ष
में तर्क देने वाले लोक सूचना अधिकारी या तीसरे पक्ष को अपनी बात कहने के लिये
बुलाया जायेगा। आपको अपना पक्ष केवल तभी रखना होगा जब आयोग को लगे कि लोक सूचना
अधिकारी या तीसरा पक्ष जो कह रहे हैं, वह कुछ तर्कसंगत है।
इस मोड़ पर, तब आपको सूचना का खुलासा करने के पक्ष में
अपने तर्क देने की जरूरत होगी।
|
सूचना
आयोगों में अपीलों पर होने वाली कार्यवाई को अदालतों जैसी औपचारिक कार्रवाई के रूप
में परिकल्पित नहीं किया गया है। आयोग के सामने अपने मामले की पैरवी करने के लिये
आपको किसी वकील की जरूरत नहीं है। यहाँ की कार्रवाई प्रतिद्वन्द्वितापूर्ण या
गोपनीय नहीं है। हालाँकि सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत सूचना आयोग को एक दीवानी
अदालत (सिविल न्यायालय) की शक्तियाँ प्राप्त हैं,66 लेकिन आयोग
को एक अदालत की तरह अपना कामकाज करने की जरूरत नहीं है। अगर आप अपील या शिकायत की
कार्रवाई के दौरान असुविधा महसूस करते हैं, तो आपको सूचना आयोग को बता
देना चाहिए और सुनवाई के दौरान किसी जानकार व्यक्ति की सहायता लेनी चाहिये। सूचना
आयोग हर स्थिति में खुलेपन का समर्थक है और आयोग व उसके कर्मियों को इस बारे में
सतर्क रहना चाहिए कि सूचना का खुलासा करने के पक्ष में दिये गये तर्कों की इसलिये
अनदेखी नहीं कर देनी चाहिये कि आपने किसी वकील की सेवाएं नहीं ली हैं।
सूचना का अधिकार अधिनियम अपील पर आयोग द्वारा फैसला करने के
लिये कोई समय सीमा निर्धारित नहीं करता है। और किसी अपील नियम में भी अभी तक ऐसी
कोई समय सीमा तय नहीं की गई है। लेकिन इस मामले में सर्वश्रेष्ठ तौर-तरीके को
देखें तो सूचना आयोग को भी अपील प्राधिकारी की तरह ही किसी अपील पर 30-45 दिनों के
भीतर फैसला कर देना चाहिए।
अगर सूचना आयोग आपकी अपील को उचित ठहराता है तो उसे आपको एक
लिखित निर्णय देना होगा। सूचना आयोग को निम्न मामलों में व्यापक और बाध्यकारी
शक्तियाँ प्राप्त हैः
(क) लोक प्राधिकरण को आदेश
देने की, कि वह सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत
अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिये ठोस कदम उठाएं, जैसे आप द्वारा निवेदित सूचना
तक आपको पहुँच देकर या आपके द्वारा देय शुल्क की राशि को घटा कर;67
(ख) इस प्रक्रिया में अगर आपको
कोई नुकसान पहुँचा है तो लोक प्राधिकरण को उसका मुआवजा देने का आदेश देने की;68
(ग) सूचना का अधिकार अधिनियम
के तहत अपने कर्तव्यों का पालन करने में असफल रहने वाले लोक सूचना अधिकारी या किसी
अन्य अधिकारी को दंड देने की।69
अगर सूचना आयोग फैसला करता है कि आपका मामला निराधार है, तो वह आपकी
अपील को रद्द कर देगा।70 दोनों ही मामलों में आयोग को
आप और सम्बन्धित लोक प्राधिकरण को अपने फैसले का नोटिस देना चाहिए और उसमें अपील
के अधिकार के विवरण भी होने चाहिए।71 भले ही
सूचना का अधिकार अधिनियम कहता हो कि सूचना लेने या देने की प्रक्रियाओं में
न्यायालयों की दखलन्दाजी नहीं होगी। आपको संविधान के तहत सूचना आयोग के आदेश के
खिलाफ उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय जाने का अधिकार है, क्योंकि
सूचना के अधिकार को एक मौलिक संवैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त है।
विकल्प 2 : शिकायत करें
अगर आप लोक सूचना अधिकारी के फैसले से असंतुष्ट हैं और आपको
लगता है कि लोक प्राधिकरण सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत अपने कर्तव्यों की पालना
नहीं कर रहा है, तो पहले अपील प्राधिकारी और उसके बाद
सूचना आयोग में अपील करने की बजाय, आपके पास अधिनियम की धारा 18(1) के तहत
सीधे सूचना आयोग में शिकायत करने का विकल्प भी है। अगर आप लोक सूचना अधिकारी को
फौरन दंडित कराना या अपने लिये मुआवजा पाना चाहते हैं, तो यह आपके
लिये विशेष उपयोगी रास्ता है। अपील प्राधिकारी को न दंड देने का अधिकार है और न ही
मुआवजा दिलवाने का। लेकिन सूचना आयोग को दोनों आदेश देने की शक्तियाँ प्राप्त हैं।
सीधे सूचना आयोग जाने से आप अपील प्राधिकारी को दरकिनार कर सकेंगे, हालाँकि इस
पद्धति में कमी यह है कि सूचना आयोगों के फैसले के लिये कोई निश्चित समयावधि तय
नहीं की गई है। अपील प्राधिकरण को अधिकतम 45 दिनों के भीतर अपना फैसला
देना होता है। आप ही को सावधानी के साथ तय करना होगा कि आपके मामले में कौन सा
तरीका ज्यादा बेहतर है।
अगर आपको सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत सूचना तक पहुँच
बनाने में कोई कठिनाई आ रही है तो आप शिकायत72 दर्ज करा
सकते हैं। कठिनाइयाँ निम्न हो सकती हैं:
(क) आप इसलिये अपना आवेदन जमा
नहीं करा पाए हैं कि उस खास विभाग ने कोई लोक सूचना अधिकारी मनोनीत नहीं किया है
या सहायक लोक सूचना अधिकारी ने आपका आवेदन स्वीकार करने से इंकार कर दिया है;
(ख) आपको निवेदित सूचना देने
से इंकार कर दिया गया है;
(ग) आपको निर्धारित समयावधि के
भीतर अपने आवेदन का जवाब या सूचना हासिल नहीं हुई है;
(घ) आपको जो शुल्क देने के
लिये कहा गया है, वह आपको तर्कसंगत नहीं लग रहा;
(च) आपको लगता है कि आपको जो
सूचना दी गई, वह अधूरी, भ्रामक या झूठ है; और
(छ) आपको सूचना का अधिकार
अधिनियम के तहत सूचना पाने में कोई अन्य कठिनाई आ रही है।
अंतिम प्रावधान को जानबूझ कर खुला रखा गया है ताकि आप सूचना
तक प्रभावी पहुँच को बाधित करने वाली किसी भी समस्या – भले ही
उनका उल्लेख अधिनियम में नहीं किया गया हो- के सम्बन्ध में सूचना आयोग से शिकायत
कर सकें। उदाहरण के लिये, इनमें शामिल हैं: किसी लोक प्राधिकरण
द्वारा सही तरीके से स्वैच्छिक रूप से सूचनाओं को सार्वजनिक करने के प्रावधान को
कार्यान्वित न करना, लोक सूचना अधिकारियों की नियुक्ति न करना, अधिकारियों
को उपयुक्त प्रशिक्षण ने देना, अधिनियम के तहत अनिवार्य
उपयोगकर्ता मार्गदर्शिका तैयार करने में सरकार का असफल रहना इत्यादि।
सूचना आयोग किसी अपील की सुनवाई कर रहे हों या किसी शिकायत
की, उन्हें जाँच और निर्णय करने की एक जैसी ही
शक्तियाँ प्राप्त हैं। संक्षेप में, सूचना आयोगों को जाँच करने की
व्यापक शक्तियाँ प्राप्त हैं, क्योंकि उन्हें एक दीवानी
अदालत (सिविल न्यायालय) के समान शक्तियाँ हासिल हैं।73वर्तमान
सूचना का अधिकार अधिनियम में फिलहाल सूचना आयोगों द्वारा शिकायतों को निपटाने की
कोई समयावधि निर्धारित नहीं की गई है। अगर शिकायत की जाँच के बाद सूचना आयोग पाता
है कि आपकी शिकायत सही है, तो उसके पास सम्बन्धित लोक प्राधिकरण या
अन्य अधिकारी को सूचना का अधिकार अधिनियम की पालना करने के लिये सभी कदम उठाने के
आदेश देने की व्यापक और बाध्यकारी शक्तियाँ हैं। उदाहरण के लिये, वह आपके
द्वारा निवेदित सूचना को देने, आवेदनों को प्राप्त और उन पर
कार्रवाई करने के लिये लोक सूचना अधिकारियों को मनोनीत करने या स्वयं अपनी पहल पर
सूचनाओं को बेहतर तरीके से सार्वजनिक करने के आदेश दे सकता है। सूचना आयोग आपको
पहुँचे किसी नुकसान के लिये लोक प्राधिकरण को मुआवजा देने का आदेश भी दे सकता है।
वह अधिनियम की पालना न करने वाले अधिकारियों को दंडित कर सकता है।74 या अगर
सूचना आयोग पाता है कि आपकी शिकायत उचित नहीं थी, तो वह उसे रद्द कर सकता है।
ऐसी स्थिति में आप राज्य के उच्च न्यायालय या दिल्ली स्थित सर्वोच्च न्यायालय में
अपील कर सकते हैं।
सूचना आयोगों को दंड देने की शक्ति
प्राप्त है
केवल सूचना आयोगों को ही – अपील प्राधिकारियों को
नहीं – निम्न कृत्यों के दोषी साबित हुए अधिकारियों के
विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश करने और 250 रू.
प्रति दिन से लेकर अधिकतम 25,000 रू. का आर्थिक जुर्माना76 लगाने का अधिकार है।
अधिकारियों के दंडनीय कृत्य हैं:
- किसी आवेदन को स्वीकार
करने से इंकार करना;
- अधिनियम के तहत तय की
गई समयावधि में सूचना प्रदान करने में असफल रहना;
- दुर्भावनापूर्वक किसी
सूचना के निवेदन को अस्वीकार करना;
- जानबूझ कर गलत,
अधूरी या भ्रामक सूचना प्रदान करना;
- किसी निवेदित सूचना को
नष्ट करना; और
- सूचना प्रदान करने में
किसी भी प्रकार से बाधा डालना।
दंड दिये जाने
से पहले सम्बन्धित अधिकारी को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए। अधिकारी को सूचना
आयोग के सम्मुख साबित करना होगा कि उसने तर्कसंगत और परिश्रम के साथ कार्रवाई की
थी।
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विकल्प 3 : अदालत में अपील करें
अगर आप स्वयं को ऐसी स्थिति में पाते हैं जहाँ आप अपनी किसी
अपील या शिकायत पर सूचना आयोग के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं, तो आप
राज्य के उच्च न्यायालय या दिल्ली स्थित सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर कर सकते
हैं। हालाँकि सूचना का अधिकार अधिनियम विशिष्ट रूप से अधिनियम के तहत अदालतों में
कोई मुकदमा, आवेदन या कार्रवाई करने पर रोक लगाता है77, लेकिन यह
याद रखना चाहिए कि सूचना का अधिकार अधिनियम हमारे मौलिक अधिकार को प्रभाव में लाता
है। संविधान के अनुसार उच्च न्यायालय (अनुच्छेद 224 के तहत) और सर्वोच्च न्यायालय
(अनुच्छेद 32 के तहत) को नागरिकों के मौलिक
अधिकारों से सम्बन्धित किसी भी मामले की जाँच करने की शक्ति प्राप्त है। इसलिये
तकनीकी रूप से केन्द्र सूचना आयोग या सम्बन्धित राज्य सूचना आयोग के किसी फैसले से
असंतुष्ट होने की स्थिति में आपको उच्च या सर्वोच्च न्यायालय जाने का अधिकार है।