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बौद्ध धर्म की प्रमुख शिक्षाएं
बौद्ध धर्म की स्थापना महात्मा बुद्ध ने की थी। तथा उस युग मे फैली ग्लानि, रूढ़िवाद, सामाजिक जटिलता के खिलाफ आवाज उठाई।
बौद्ध धर्म की शिक्षाएं निम्न है

1 चार आर्य सत्य 
2 अष्टांगिक मार्ग
3 शील के दस नियम
4 निर्वाण
1. चार आर्य सत्य में गौतम बुद्ध ने समस्त भौतिक संसार को दुखों से आवृत किया स्वीकार किया है।
(अ) दुख -- संसार में सर्वत्र दुख ही दुख है। जीवन दुखों व कष्टों से परिपुर्ण है। जिन्हें हम सुख समझते हैं ये भी दुखों से भरे हुए हैं।
(ब) दुख का कारण-- प्रत्येक वस्तु का कोई न कोई कारण अवश्य होता है। अतः दुख का भी कारण होता है। क्योंकि कोई भी वस्तु बिना किसी कारण के नही हो सकती, सभी दुःखो का कारण #वासना है।
(स) दुख दमन -- दुःख अंत संभव है। दुःखों के मूल कारण 'तृष्णा' का विनाश कर दिया जाए तो दुःख भी नष्ट हो जाएंगे।
(द) दुख निरोध मार्ग -- दुःख के मूल तृष्णा के विनाश का उपाय अष्टांगिक मार्ग है।
2. अष्टांगिक मार्ग -- अष्टांगिक मार्ग के आठ उपाय है
(1) सम्यक-दृष्टि :- वस्तुओ के वास्तविक रूप का ज्ञान ही सम्यक-दृष्टि है।
(2) सम्यक-वाक :- वचन की पवित्रता ही सम्यक-वाक है।
(3) सम्यक-कर्मान्त :- दान,दया,सत्य अहिंसा आदि सत्कर्मो का अनुसरण करना ही सम्यक-कर्मान्त है।
(4) सम्यक-व्यायाम :- नैतिक,मानसिक एवं आध्यात्मिक उन्नति के लिए सतत प्रयत्न करते रहना ही सम्यक-व्यायाम है।
(5) सम्यक-आजीव :- उचित ढंग से "जीविकोपार्जन" करना चाहिए।
(6) सम्यक-स्मृति :- अपने विषय मे सभी प्रकार की मिथ्या धारणाओं का त्याग कर सच्ची धारणा रखना ही सम्यक-स्मृति है।
(7) सम्यक-संकल्प :- द्वेष तथा हिंसा से मुक्त विचार रखना ही सम्यक-संकल्प है।
(8) सम्यक-समाधि :- चित्त की एकाग्रता ही सम्यक-समाधि है।
3. शील के दस नियम --- अपनी शिक्षाओं में महात्मा बुद्ध ने आचरण की शुद्धता के लिए शील अथवा सदाचार के लिए दस नियमों का अनुशरण आवश्यक बताया है।
ये है -- सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, संगीत व नृत्य का त्याग करना, कोमल शय्या का त्याग, कंचन कामिनी का त्याग।
4. निर्वाण --- बौद्ध धर्म मे "निर्वाण" मनुष्य का परम लक्ष्य बताया गया है निर्वाण का शाब्दिक अर्थ 'बुझ जाना' या 'शान्त हो जाना' है। निर्वाण प्राप्त व्यक्ति जन्म-मरण के जाल में मुक्त हो जाता है उसे हर प्रकार के दुःख छुटकारा मिल जाता है।

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