छुआछुती विरोधी कानून, 1955
भारत के संविधान में हर नागरिक को एक
समान माना गया है | किसी भी व्यक्ति को किसी ख़ास जाति में पैदा होने के कारण उसे
अछूत मानकर जो दुरी का व्यवहार किया जाता है | वो छुआछूत कहलाता है व मानवता पर
कलंक है | इसके लिए छुआछूत रोकने के लिए छुआछूत विरोधी क़ानून बनाया गया है| इससे
नागरिकों के हितों की रक्षा होती है | छुआछूत के आधार पर किसी भी तरह की रोकटोक
लगाने वाले को सजा दी जाती है | समाज में सभी को बराबरी से रहने का हक है |
सार्वजनिक चीजें जैसे कुँए,तालाब, आदि का इस्तेमाल पर हर जाति के लोगों का हक हैऔर
रोकने पर अपराध माना गया है व एक साल की सजा व 500 रुपये का जुर्माना हो
सकता है | बार-बार अपराध करने सजा हर बार बढ़ सकती है|* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
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