डॉ. अम्बेडकर के विचार

1.    सभी मनुष्य एक ही मिटटी के बने हुए हैं और उन्हें अधिकार है की अपने साथ अच्छे व्यवहार की मांग करें
2.    धर्म का ध्येय इंसान और भगवान् के बीच सम्बन्ध न होकर , इंसान-इंसान के बीच अच्छे सम्बन्ध स्थापित करना चाहिए
3.    भाग्यवाद इंसान को दब्बू , कमजोर बुझदिल बनाता है जो धर्म एक को श्रेष्ठ और दुसरे को नीच बनाये रखे , वह धर्म गुलाम बनाये रखने का षड्यंत्र है
4.    सामाजिक एकता के बिना राजनैतिक एकता प्राप्त करना कठिन है , यदि प्राप्त भी हो जाये , तो वह उसी मौसमी पौधे की तरह होगी जो मामूली हवा के झोके से जड़ से उखड जाता है
5.    मै धर्म चाहता हूँ , धर्म का नाम पाखंड नहीं , भारत में समाजिक क्रांति के बिना सामाजिक व धार्मिक सुधार असम्भव है
6.    जैसे ऊँची-नीची जमीन से अच्छी पैदावार की आशा नहीं की जा सकती , उसी प्रकार समाज में उंच – नीच की भावना के रहते , राष्ट्र की प्रगति नहीं हो सकती
7.    छुआछूत समाप्त करना मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है जात-पांत के रहते , न समाज संगठित हो सकता है और न उसमे राष्ट्रीय भावना जागृत हो सकती है
8.    जातिविहीन समाज की स्थापना के बिना राजनैतिक आजादी व्यर्थ है
9.    समता, स्वतंत्रता, एवं बंधुत्व पर आधारित जीवन का नाम लोकतंत्र है सभी मनुष्य एक सामान है , अत: एक मानव का दुसरे मानव द्वारा शोषण मानवता
 के खिलाफ है | इसलिए सभी मनुष्यों को एक दुसरे की भलाई करनी चाहिए
                10. मैं ऐसा समाज रचना चाहता हूँ , जो समता स्वतंत्रता व भाई चारे की भावना से   
                      भरी हो
                11 महिलाओं ! यदि तुम्हारे बच्चे शराब पीते हैं , और तुम्हारा पति भ्रष्टाचारी है तो उन्हें 
                     खाना मत दो
                12. किसी भी समाज की प्रगति का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है की उस
                     समाज में महिलाओं की कितनी प्रगति है
                13. राजनैतिक सत्ता पाने की गति चाहे धीमी हो परन्तु दिशा सही होनी चाहिए
                14. कानून मनुष्यों द्वारा मनुष्यों की सुविधा व अनुशासन के लिए बनाये हैं
                15. जातिविहीन समाज की स्थापना के बिना सच्ची आजादी नहीं आएगी
                16. मै अपने और राष्ट्र के बीच राष्ट्र को ही महत्व दूंगा
                17. युवाओं को मेरा यह पैगाम है की एक तो वह शिक्षा व बुद्धि में किसी से कम नहीं    
                      रहें दुसरे एस और आराम नहीं पड़कर समाज का नेतृत्व करें , तीसरा समाज के   
                      प्रति अपनी जिम्मेदारी संभाले तथा समाज को जागृत और संगठित कर उसकी
                      सेवा करें
                18. बलि बकरे की दी जाती है शेर की नहीं इसलिये आप शेर बनें
                19. ज्ञान ही मनुष्य के जीवन की आधारशिला है
                20. यदि तुम संघर्ष पर उतारू हो जाओ तो सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी , ध्येय सच्चा    
                      हो तो दुश्मन को रास्ता छोड़ना ही होगा

                21. राजनैतिक सत्ता वह मास्टर की (चाबी) है , जिससे विकास के सरे ताले खुलते हैं 
                                


                                                                          ताराचन्द जाटव 

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