आर्थिक क्रान्ति की और बढ़ते दलित


                    न,दौलत, रूपया, जर,पूंजी, या माया इस जगत के सर्वाधिक चर्चा, विवाद का व महत्वपूर्ण विषय रहा है|सदियों से इसे पाने के लिए जबरदस्ती चाह रही है तो किसी ने दबी जुबान से विरोध भी किया| दुनिया में सबसे जटिल विषय है पैसा, पैसे से अच्छे हैं या बुरे ? कोई कहता है पैसा सभी बुराई की जड़ है तो कोई कहता है यह तो मेहनत का फल है, और एक सुखी जीवन के लिए पैसों की बहुत आवश्यकता होती है| किसी भी विषय पर इतनी विरोधाभासी धारणाएं नहीं हैं, जितने पैसों पर, पैसों के जितने विरोधी है उतने ही समर्थक भी हैं, गुजरे दो हजार वर्षों के पिछले 50 वर्षों में ही मनुष्य की जीवन शैली , सोच विचार, धारणाएं, टेक्नोलॉजी, जीवन व इसके उद्धेश्य के प्रति मान्यताओं में जितना तेजी से बदलाव आया उतना बीते दो हजार वर्षों में नहीं आया|


          भारत में अरबपतियों की संख्या बढती जा रही है , एक और अधिकतर भारतीय पूंजीपति सामाजिक दायित्वों से आँख मूँद कर दिनों दिन अपनी तिजोरियां भर रहे है, तो दुसरी और बिल गेट्स, अजीम प्रेमजी,जकरबर्ग, वारेन बफेट जैसे कई अमीर लोग गरीबों को शिक्षा व स्वास्थ्य के प्रसार के लिए बेशुमार दौलत दान में दे रहे हैं| एक और पैसे के लिए गला काट होड़ चल रही है अमीर और अमीर होता जा रहा है, महलनुमा मकानों में व मंदिरों अकूत धन जमा किया जा रहा है| दूसरी और श्रीलंकाई मूल के मलेशियाई अरबपति व्यापारी का प्रतिभाशाली बेटा सारी माया को त्यागकर बौद्ध भिक्खु बनकर प्रेम, करुणा,व प्रज्ञा के मार्ग पर चल पडा है|धन की लीला को आजतक कोई समझ नहीं पाया है , न ही इसकी परिभाषा गढ़ पाया है| लेकिन इतना तो तय है मनुष्य जीवन में धन का होना बहुत जरुरी है, हर कदम पर पैसे की जरुरत पड़ती है, इसके बिना कई मुश्किलें खडी हो जाती हैं और सारे आदर्श उद्धेश्य व सपने सब चकनाचूर हो जाते हैं| भारतीय समाज का एक वर्ग व कई धर्मगुरु धन के मामले में पाखंडी व ढोंगी के रूप में पेश आते हैं वे दोहरा जीवन जीते हैं| कहते कुछ हैं और करते कुछ और हैं| आम व्यक्ति भी रुपयों को ठोकर मारने की आदर्शवादी बातें करता हैं, लेकिन व्यवहारिक जीवन में बारह महीनों, बत्तिशों घडी और दशों दिशाओं में मन से, वचन और कर्म से पैसा कमाने में जुटा रहता है| हमारे कथित धर्म गुरु सोने के सिंहासन पर बैठ कर सादगी के उपदेश देते हैं| अपने उपदेशों में वे माया को मोहिनी व ठगिनी बता कर भोली जनता को आदेश देतें हैं की वे अपनी सारी माया को गुरु के चरणों में डाल दें तो उनका कल्याण हो जायेगा|
                     
                     आर्थिक समृद्धि के बिना हमारा उद्धार नहीं

               नुष्य जीवन में धन का महत्त्व, इसे कमाने का ढंग तथा धन को खर्च व दान करें का सही , व्यवहारिक व मानव कल्याण का रास्ता महत्मा बुद्ध  ,  संत कबीर , व बाबा साहब अम्बेडकर ने बताया है| तथागत बुद्ध ने गरीबी का कभी गुणगान नहीं किया बल्कि कहा गरीबी सबसे बड़ा रोग है , यह सरे रोगों की जननी है| उन्होंने भूख, गरीबी, दरिद्रता व अभाव के जीवन में मुक्ति का मार्ग बताया| उन्होंने म्हणत , इमानदारी व न्यायसंगत ढंग से धन को कमाने तथा इसे घर परिवार , व्यापार व मानव कल्याण में खर्च करने तथा दान करें को कहा| बुद्ध ने यह भी कहा की मनुष्य धनि बने लेकिन धन के गुलाम नहीं बनें| आरोग्य सबसे बड़ा सुख तथा लालच से परे संतोष सबसे बड़ा धन है, मानवता के मसीहा व विख्यात अर्थशास्त्री डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने तो मानो दलितों शोषितों की अंततः आर्थिक समृद्धि के लिए ही अपने जीवन को मशाल बनाकर जिया| वंचित वर्ग की गरीबी व दरिद्रता से वे काफी चिंतित रगते थे तथा इससे हर हालत में मुक्ति दिलाकर दलितों को धनि बनाना चाहते थे| उन्होंने खुद नें गरीबी व अभावों की असहनीय पीड़ा को भोगा था इसलिए उनके जीवन का उद्धेश्य ही इस वर्ग का सामाजिक व आर्थिक उत्थान करना था| वे चाहते थे की दलित धनवान बने सिर्फ नौकरी मांगने वाले ही नहीं बल्कि नौकरी देने वाले भी बनें| इसके लिए उन्होंने एक और सत्ता से संघर्ष किया तो दूसरी और कहा दलित वर्ग मंदिर धर्मशास्त्र पूजापाठ कर्मकांड तीर्थयात्रा व्यशनआदि से दूर रहे तथा अपने आर्थिक सामाजिक उद्धार हेतु उच्च शिक्षा ग्रहण करें धनि बनाने वाले रोजगार व व्यवसाय अपनाएं| उन्होंने चेताया था की विषमता की खाई को जल्दी ख़तम नहीं किया तो इससे पीड़ित लोग लोकतंत्र के महल को भस्म कर देंगे| आजादी के लम्बे समय बाद भी आर्थिक गैरबराबरी दिनोंदिन बढती जा रही हैं |
  

                                                                            ताराचन्द जाटव 
            
         

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