एल्फिंस्टन कोलेज से बी.ए. करने के पश्चात फोज की नौकरी तक का सफ़र


ल्फिंस्टन हाई स्कूल के एक आध्यापक भीमराव अम्बेडकर की उपेक्षा करते थे | भीम एक दिन जब उन्हें अपना गृहकार्य दिखाने गया तो अध्यापक हेय से नाक सिकोड़कर बोला – अरे तू महार है ना पढ़ लिख कर करेगा क्या | अपमान की इस सीधी चौट से बालक आग बबूला हो गया और बोला- “सर पढ़ लिखकर मै क्या करूँगा, यह पूछने का काम आपका नहीं है |यदि फिर कभी मेरी जाति उल्लेख कर मुझे छेड़ा तो मै कह देता हूँ इसका परिणाम अच्छा नहीं होगा |
        छात्र अम्बेडकर की संस्कृत पढने की प्रबल आकांक्षा थी लेकिन अछूत होने के कारण उसे फ़ारसी विषय को ही पढना पडा | संस्कृत के अध्यापक ने उन्हें दो जवाब देते हुए कहा की मैअछूत लड़कों को संस्कृत नहीं सिखाउंगा | इसी कारण संस्कृत भारत जननी कही जाने वाली भारत की भूमि के इस सपूत ने जर्मन में जाकर संस्कृत सीखी | आगे चलकर डा. अम्बेडकर ने उसका उल्लेख इस प्रकार किया “मुझे संस्कृत भाषा पर अत्यंत अभिमान है और मै चाहता था की संस्कृत का अच्छा विद्धवान बनूँ परन्तु अध्यापक के संकुचित दृष्टिकोण से मुझे संस्कृत भाषा से वंचित रहना पडा |
      छात्र अम्बेडकर लैंप के मध्यम प्रकास टेल अध्ययन किया करते थे उनके पास पाठ्यसामग्री का भी अभाव सा ही बना रहता था | घर का वातावरण घुटन भरा था इतनी कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने सन 1907 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की | तत्कालीन परिवेश में किसी अछूत बालक के लिए मैट्रिक करना एवेरेस्ट विजय करने से कम नहीं था | आस-पास की अछूत बस्तियों में खुशी की लहर दौड़ गयी | पाण्डाल बनाकर मंच पर अम्बेडकर अभिनन्दन किया गया | प्रमुख वक्ता थे श्रीकृष्ण जी केलुस्कर | उन्होंने कहा “भीमराव को कोलेज में दाखिल होकर उच्च शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए” उन्होंने अम्बेडकर को बुद्ध चरितम: नामक पुस्तक भी भेंट की |
        छुआछूत की भाँती बाल-विवाह जैसी कुप्रथा भी उस समय समाज पर हावी थी | भीमराव जब सोलह वर्ष के थे, उनका विवाह माता-पिता विहीन कन्या रमाबाई के साथ कर दिया गया | उस समय रमाबाई की उम्र मात्र 9 वर्षा थीं | वह सुन्दर तथा शील स्वभाव की अबोद्ध बालिका थी |
       विधार्थी सुलभ सुविधाओं के अभाव व घर का शोर-शराबा वाला माहोल होने से सन 1912 में भीमराव ने तृतीय श्रेणी में ही बी.ए. पास किया | अपने अपने लड़के को स्नातक हुआ देखे उनके पिता फूले नहीं समा रहे थे इस अप्रत्याशित ख़ुशी में उन्होंने पांच रूपए के पेडे मंगवाकर कर बंटवाये | बी. ए. पास करने पर बंबई भर के अछूतों की और से भीमराव को बधाईयाँ आईं |
       बी. ए. पास करने के बाद भीमराव के सामने नौकरी करके अपना तथा अपने परिवार का भरण-पोषण करने की समाश्या आ खडी हुई | बडौदा के महाराज सयाजीराव गायकवाड की छात्रवृति से उन्होंने बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की थी | अम्बेडकर उनके इस ऋण से उत्तीर्ण होने के लिए बड़ोदा चले गए | महाराज ने उनको अपनी फ़ौज का लेफ्टिनेंट नियुक्त कर दिया | उस समय उनकी आयु मात्र 21 वर्ष थी | दादा हवलदार रहे, पिता सूबेदार रहे, वे लेफ्टिनेंट के एक बड़े पद पर नियुक्त हुए थे |
       विडम्बना, राज्य सेवा में अभी पन्द्रहवां दिन भी नहीं गुजरा था की उनके पिता जी के शख्त बीमार हेने का तार आ गया | वे कलेजा थामे घर आये | सूबेदार रामजी सकपाल मानों उन्ही का इंतजार कर रहे थे | बेटे को देखा, आँखें छलछला आई उनकी | उनके आंसूं ढुलकते रहे लेकिन वे टकटकी लगाये अपने लाडले को ही निहार रहे थे | उन्होंने अम्बेडकर को अपनी खाट पर बिठाया | उनकी पीठ पर हाथ फेरा और शांत हो गए, जैसे समाज उत्थान का समूचा भार उन्ही को सौंपने के लिए रुके थे वह 2 फ़रवरी 1913 का मनहूस दिन था | माँ भीमाबाई तो उनको छ: वर्ष का ही छोड़कर चली बसी थी |

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.