बाबा साहब अम्बेडकर का उपनाम अम्बावडेकर से अम्बेडकर कैसे पड़ा और प्राइमरी शिक्षा तक का चुनौतीपूर्ण सफ़र कैसे तय किया |

विदेशी दासता की बेड़ियां हमारे देश को जकड़े थी | कुरुतियाँ समाज के प्रभामंडल को क्षीण कर रही थी | जाति – पांति और छुआ-छूत का कोहरा चहुँ और आच्छादित था | घने काले मेघों के बीच से प्रकट होने वाले रवि के समान विकट परिस्थितियों के बीच इस धरा पर एक दिव्य प्रतिभा ने जन्म लिया |
उस मेधावी बालक का नाम था भीमराव | आज से 127 वर्ष पूर्व 14 अप्रैल 1891, को महू कैंट, इंदौर में जन्मे भीमराव का परिवार महार नामक जाति से था | वह अपने माता पिता की चौदहवीं संतान थे | वह अपने आपको चौदहवां रत्न कहकर बहुत खुश होते थे | मां भीमा बाई आँखों का तारा मानती थी उन्हें | मां बालक भीम को गोद में खिलाती और दुलार से कहा करती थी, “मेरा भीम बड़ा आदमी बनेगा” मां भीमाबाई का वह सपना साकार हुआ | आगे चलकर वाही बालक अम्बेडकर के रूप में आमजन के मसीहा बने और विश्वविख्यात हुए |
भीम के दादा जी का नाम मालोजी राव था | वे अंग्रेजी सेना में हवलदार के पद पर थे | वीरता के लिए उनको 16 तमगे प्राप्त हुए | उनके पुत्र भीम के पिता रामजी सकपाल भी अंग्रेजी सेना में सूबेदार के पद पर कार्यरत थे | श्री सकपाल वर्ष 1894 सेना से सेवानिवृत हुए | वे सपरिवार दापोली आ बसे थे | सन 1896 में उनको सतारा में पी.डब्लू.डी. के कार्यलय में स्टोरकीपर की नौकरी मिल गई | वे अपने परिवार को दापोली से सतारा ले गए |
भीम का शरीर हस्ठ-पुष्ट था | वे स्वभाव से स्वाभिमानी थे | अपनी आन पर जिद पकड़ लेते और अपने लक्ष्य को प्राप्त करके ही दम लेते थे | आगे चलकर यही स्वाभिमान, शोर्य,साहस और आन पर मर मिट जाने का हठ कदम दर कदम उनका मार्ग प्रशस्त करते रहे |
भीम  को बचपन से ही किताबें के प्रति बहुत ललक थी | अबोध और निरक्षर बालक को जब भी कोई लिखा पन्ना हाथ लगता वह उस पर लिखे एक – एक शब्द को इतने मनोयोग से देखता मानों ये शब्द ही उसके जीवन की लौ हो | वह स्कूल जाते बच्चों को बड़े गौर से देखा करता और कई बार तो उनके साथ-साथ चलने लगता | माँ भीमाबाई बालक को गोद में उठाये घर लाती |
भीमराव जब छ: वर्ष के हुए तो उन्हें सतारा के कैंट स्कूल में भर्ती कराया गया | उनका उपनाम अम्बावडेकर से अम्बेडकर कैसे पड़ा, इसके बारे में आगे चलकर उन्होंने अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किये थे “अम्बेडकर नाम के एक ब्राह्मण मास्टर हमें पढ़ाते थे | वे हमें कुच्छ ज्यादा नहीं पढ़ाते थे | बीच की छुट्टी में खाने के लिए मुझे स्कूल से दूर अपने घर जाना पड़ता था | मुझे यह कहने में स्वाभिमान मालूम होता है की उस प्रेम में साग-रोटी का मिठास कुछ और ही था |  एक दिन उन्होंने मुझसे कहा की यह तेरा अम्बावडेकर नाम बोलने में अटपटा है उससे मेरा नाम उपनाम अम्बेडकर बोलने में सीधा सपट है | अब आगे तू भी अम्बेडकर उपनाम लगाया कर और उन्होंने रजिस्टर में वैसा ही नाम दर्ज कर दिया |
उन दिनों छुआ-छूत और जाति भेद जैसी बीमारियाँ चरम सीमा पर थी | एक दिन बालक अम्बेडकर अपने बाल बनवाने के लिए नाई की दूकान पर गया | नाई उसे पहचान गया और धमकाता हुआ बोला – “तुम अछूत बालक हो | तुम्हारे बाल नहीं काट सकते | भाग जाओ यहाँ से, फिर कभी दूकान पर मत आना” बालक इच्छा व स्वाभिमान का वहीँ खून हो गया | भीम को यह देखकर तो और भी दुःख हुआ की एक और दूसरा नाई भैंस के बाल काट रहा था | वह आँखों में आंसू भरे घर आया और अपनी बहन मीरा को यह बात बताई | मीरा ने उसको चुप किया और स्वयं उसके बाल बनाने लगी |
विधालयी परिवेश भी छुआ-छूत से अछूता नहीं था | दुसरे क्षात्र कमरों में “डेस्क” पर बैठ कर पढ़ते थे | भीम व उनके भाई आनंदराव को बहार बैठ कर बरामदे में पढ़ना पड़ता था | यह वह जगह थी जहां पर दुसरे क्षात्र अपने जूते निकालते थे | स्कूल के क्षात्र जब खेलते थे, भीमराव और आनंदराव मन मारे बैठे रहना पड़ता था | भीमराव अच्छा खिलाडी था, परन्तु अछूत होने के कारण सवर्ण लड़कों के साथ खेलने की मनाही थी | दोनों भाइयों को स्कूल में प्यास लगती तो पानी पीने के लिए भी उन्हें दुसरे लड़कों की चिरोरी करनी होती | कभी-कभार तो उनको सारे के सारे दिन प्यासा ही रहना पड़ता था | एक बार क्षात्र अम्बेडकर को खूब प्यास लगी | उसका गला सुख गया | उसने हिम्मत करके पास की एक प्याऊ से पानी पी लिया | जब इसका पता लगा तो उसको बुरी तरह पीता गया |
इन्ही विपरीत परिस्थितियों में बालक अम्बेडकर ने वर्ष 1902 में प्राईमरी शिक्षा प्राप्त की |

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