नारी सम्मान व होलिका दहन

होली पर्व को मना कर हम औरत को कितना सम्मान देतें ये होलीका दहन और धुलंडी पर स्पष्ट हो जाता है, औरत को सम्मान देना क्यों जरुरी है | भारत देश की परम्पराएं भी विचित्र हैं एक तरफ से कहते हैं हमारे देश के जैसा कोई भी देश नहीं हैं और, हो भी नहीं सकता, बिलकुल भी नहीं हो सकता है,क्योंकि होना भी नहीं चाहते हैं| अपनी नाकामयाबी और सड़ी गली संकीर्ण मानसिकता उनको करने भी क्या सोचने भी नहीं देती है | भारत देश को पहले सोने की चिड़िया कहते थे | जबसे ब्राह्मण धर्म (सनातन धर्म) स्थापित हुआ है जबसे देश की हालत इतनी खराब हो चुकी आप लोग देख सकते हैं क्यों की धर्म के ठेकेदारों ने देश के भोलेभाले भारत के मूलनिवासियों की मानवता के साथ खेलने का बहुत बड़ा काम किया है और अब भी कर रहे हैं सबसे बड़ा अगर आर्थिक नुकसान हुआ है तो वो हुआ है हिन्दू धर्म की वजह से क्योंकि मंदिरों और देवी देवताओं भगवानो की वजह से सालों से मानव जीवन पर बड़ा बुरा प्रभाव पडा है  आस्तिक व नास्तिक में बड़ा फर्क है भारत के लोगों को आस्तिक बना दिया और आस्था के नाम बहुत बड़ा बिजनेस किया जाता है नास्तिक बहुत बड़ा आविष्कार कर सकता है क्योंकि वह अपने दिमाग का इस्तेमाल करके खोज करते है इसी वजह से भारत से अलग देश जैसे जापान, अमेरिका, जर्मनी, रुष चीन जैसे देशों के तरक्की का कारण है यही है की भारत की तरह धर्म जाति में नहीं बंटकर देश हित में सोचा जाता है | भरत में  आडम्बर पाखंडवाद का सहारा लेकर मानव को  ऊंच नीच समझा जाता है आज होली के दिन भी इस बात को साबित कर रहा है एक औरत को ज़िंदा जलाया जाता है, सती प्रथा भी भारत का ही हिस्सा इसमें औरत का क्या कसूर मौत तो नेचुरल है एक दिन उसे मरना ही है फिर भी उसे अपने पति की चिता पर ज़िंदा जलना होता है किसी लड़की या औरत का बलात्कार हो जाता है तो उस लड़की को ही दोषी व जिम्मेदार ठहराया जाता है दहेज़ के नाम पर आज भी जिन्दा जला दिया जाता है यही है 21 वीं सदी का आधुनिक भारत, कहतें है औरत दो परिवारों को संतुलित करने का काम करती है मानव जीवन में आदमी को औरत की सबसे ज्यादा जरुरत होती है, जिस तरह रेल पटरी के बिना, गाड़ी एक पहिये से नहीं चल सकती उसी तरह मानव जीवन भी सफल नहीं है इस लिए औरत को शिक्षित व सम्मान देना बहुत जरुरी है तभी मानव विकास सम्भव हैं और यही मानव धर्म है | ये समाश्या और किसी विकासशील देशों की नहीं है सिर्फ भारत देश की है |
समाज चिन्तक 
ताराचन्द जाटव                                     
                         

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